क्यूबेक का पक्षपाती कानून संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता को छीनने वाला: डॉ. कंवलजीत कौर
कहा, बिल-21 कानून को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चुनौती देने के लिए शिरोमणि कमेटी करे कार्रवाई
अमृतसर–PRIME PUNJAB
32 देशों की सिख संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली ग्लोबल सिख काउंसिल (जी.एस.सी.) ने कनाडा के क्यूबेक प्रांत द्वारा लागू किए गए विवादास्पद ‘बिल-21’ कानून की कड़ी निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यू.एन.एच.आर.सी.) और कनाडा की संघीय सरकार से उस विवादास्पद कानून को तुरंत निरस्त करने की अपील की है जिस के तहत सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले सिख कर्मचारियों को धार्मिक प्रतीक, जैसे पगड़ी पहनने पर रोक लगाई गई है।
जी.एस.सी. ने कहा है कि यह कानून संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार घोषणापत्र का सीधा उल्लंघन करता है, जिस पर कनाडा सरकार ने हस्ताक्षर किए हैं। इसीलिए, काउंसिल ने कनाडा की संघीय सरकार और अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाओं से इस गंभीर मुद्दे पर तुरंत कार्रवाई की मांग की है।
इस बयान में काउंसिल की अध्यक्ष लेडी सिंह डॉ. कंवलजीत कौर, ओ.बी.ई. ने जोर देकर कहा कि कनाडा का संविधान देश के सभी नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसके अलावा, नस्लीय और धार्मिक अधिकारों की रक्षा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संधियों को कनाडा ने स्वीकार किया हुआ है। उन्होंने कहा कि क्यूबेक प्रांत का यह कानून अपने नागरिकों के धार्मिक विश्वासों के आधार पर भेदभाव को वैध ठहराता है और उनके मौलिक संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
डॉ. कंवलजीत कौर ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद, नागरिक स्वतंत्रता संगठनों, कनाडा के सांसदों और मानवाधिकार संस्थाओं से इस कानून के खिलाफ कड़ी आवाज उठाने की अपील की है। उन्होंने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एस.जी.पी.सी.) से भी अपील की कि वे इस विवादास्पद बिल-21 के विरोध में शामिल होकर वहाँ बसे सिखों के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए इस कानून को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में चुनौती दें।
काउंसिल की अध्यक्ष ने कहा कि दुनियाभर के सिखों को अपने देशों में धार्मिक प्रतीक, जैसे पगड़ी पहनने और दाढ़ी-केश रखने की पूरी आजादी है, लेकिन केवल क्यूबेक प्रांत में सख्त पाबंदियाँ लगाई गई हैं।
गौरतलब है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर क्यूबेक प्रांत का ‘बिल 21’ शिक्षकों, पुलिस अधिकारियों, वकीलों और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों को अपने धार्मिक चिन्ह, जैसे मुस्लिमों के लिए हिजाब, सिखों के लिए पगड़ी, यहूदियों के लिए यारमुल्के, और ईसाइयों के लिए क्रॉस पहनने से रोकता है।
जी.एस.सी. प्रधान ने कहा है कि यह कानून न केवल धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करता है, बल्कि क्यूबेक प्रांत में नस्लीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों को असमान रूप से प्रभावित करते हुए उन्हें राज्य से बाहर निकालने का माहौल भी बना रहा है।
डॉ. कंवलजीत कौर ने कहा कि ‘बिल 21’ कनाडा के संविधान में दर्ज सार्वजनिक अभिव्यक्ति और धार्मिक स्वतंत्रता का खुला उल्लंघन करता है। इसके अलावा, यह कानून धार्मिक प्रतीक पहनने वाले नागरिकों को बेहतर भविष्य बनाने, सार्वजनिक सेवाओं में उनकी भूमिका को कम करने और पेशेवर विकास के अवसरों को सीमित करता है।
उन्होंने बिल 21 के नकारात्मक सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर जोर देते हुए कहा कि कई प्रतिभाशाली पेशेवर क्यूबेक छोड़कर कनाडा के अन्य प्रांतों में नौकरियाँ खोजने के लिए पलायन कर चुके हैं। इस प्रकार, क्यूबेक से धार्मिक सिखों का पलायन उन प्रांतों में हो रहा है जो उनके धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का सम्मान करते हैं।
ग्लोबल सिख काउंसिल ने ‘बिल 21’ को तुरंत रद्द करने की मांग करते हुए कहा है कि वहाँ सभी धर्मों से जुड़े सार्वजनिक कर्मचारियों को भी क्यूबेक की नेशनल असेंबली और प्रांतीय विधानसभा के चुने गए सदस्यों की तरह धार्मिक चिन्ह पहनने का अधिकार दिया जाना चाहिए।
डॉ. कंवलजीत कौर ने कहा कि क्यूबेक में सभी समुदायों के धार्मिक अधिकारों को बहाल करने और पूरे कनाडा में समानता, धार्मिक स्वतंत्रता और समावेश के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए इस सख्त कानून को रद्द किया जाना चाहिए।
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