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योग और डाइट कर सकते हैं मदद कैल्शियम की कमी से भी ऐसा हो सकता है
यह समस्या जेनेटिक डिसऑर्डर से जुड़ी भी हो सकती है।
डॉ अर्चिता महाजन न्यूट्रीशन डाइटिशियन एवं चाइल्ड केयर होम्योपैथिक फार्मासिस्ट एवं ट्रेंड योगा टीचर नॉमिनेटेड फॉर पद्म भूषण राष्ट्रीय पुरस्कार ने बताया कि शरीर में बनने वाली हर प्रकार की गांठ कैंसर नहीं हो सकती कुछ घुलने वाली भी होती है।कई बार छोटी-मोटी गांठों को कैंसर समझकर लोग बेवजह पैनिक होते हैं। 50 से 60 प्रतिशत गांठ बिल्कुल सुरक्षित है और यह कैंसर में नहीं बदल सकती है.सर्जरी के बाद भी उनके दोबारा होने के खतरे को खत्म नहीं किया जा सकता है। सर्जरी के बाद यह गांठ और ज्यादा बड़ी भी हो सकती हैशरीर में गांठ के लक्षण कई प्रकार के होते हैं.कभी-कभी किसी छोटी-मोटी बीमारी के कारण भी गांठ बनती है. पर कभी-कभी अनायास ही बिना किसी कारण के शरीर में कहीं भी गांठ निकल आती है. कभी ये गांठ दर्द के साथ होते हैं तो कभी ये गांठ बिना दर्द के भी होते हैं. यदि गांठ के साथ खून आ रहा हो तो यह कैंसर का लक्षण हो सकता है. अधिकतर कैंसर की शुरुआत गांठ से ही होती है. शुरुआती में गांठ छोटा होता है और उसमें दर्द नहीं रहता है तो लोग इसे नजरअंदाज कर देते हैं. कचनार का छाल: कचनार के छाल को सुखाकर इसे अच्छी तरह पीस कर पावडर बना लें. अब इस पावडर को एक गिलास पानी में डालकर 3 से 4 मिनट उबालकर इसमें थोड़ा सा गोरखमुंडी डालें. अब इस पानी को पुनः उबालकर छानकर ठंडा करके रख लें. अब इस पानी को दिन में 2 बार करके पीना चाहिए. एक महिना तक इसका सेवन करने से शरीर के किसी भी हिस्से का गांठ समाप्त हो जाता है. गांठ में आंकड़े का दूध भी फायदेमंद है. मिट्टी में आंकड़े का दूध मिलाकर गांठ पर लगाना चाहिए. इस प्रकार आंकड़े का दूध गांठ पर लगाने से कुछ ही दिनों में गांठ ठीक हो जाती है.हल्दी का सेवन से गांठ को बढ़ने से रोका जा सकता है. इसलिए गांठ होने पर हल्दी का सेवन करना चाहिए. इसके लिए दूध में हल्दी मिलाकर पीना चाहिए. पर यदि गांठ से खून आ रहा हो तो चिकित्सक से सलाह लेकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए क्योंकि हल्दी खून को थक्का बनने से रोकता है.स्तन वाली गांठ के सावधान करने वाले लक्षण, निपल बदल जाता है पीछे हटना और निपल उलटा हो जाना ।खूनी निपल स्राव।स्तन में गड्ढा पड़ना या मोटा होना।स्तन पर घाव जो ठीक नहीं हो रहा है।बगल में लिम्फ नोड्स में सूजन। होम्योपैथिक उपचार हर पेशेंट की लक्षणों के हिसाब से अलग से मेडिसिन होती है। वैसे तो थूजा आक्सीडेंटल हर गांठ पर काम करती है। पर इसकी पावर पेशेंट के लक्षणों के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है
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