राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी के दिशा-निर्देशों के अनुसार सिर्फ लोक भलाई के लिए की जा रही है फंडों की उपयोग: डॉ. बलबीर सिंह
नए सॉफ्टवेयर की तकनीकी खामियों और केंद्र सरकार द्वारा फंड न जारी करने के कारण आई अस्पतालों के भुगतान में देरी: स्वास्थ्य मंत्री
स्वास्थ्य मंत्री ने गैर-इच्छुक निजी अस्पतालों को योजना से स्वैच्छिक रूप से बाहर हो जाने पेशकश, कहा ‘सेवा’ करने के इच्छुक अस्पतालों को करेंगे अधिकृत
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा से आग्रह किया मुद्दे को सुलझाने की अपील
पिछली सरकारों द्वारा बीमा कंपनियों के साथ किए गए एकरारनामा अचानक रद्द करने के कारण हुई स्कीम में गड़बड़ी: स्वास्थ्य मंत्री
चंडीगढ़, 1 अक्टूबर:Prime Punjab
आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना (ए.बी.-एम.एम.एस.बी.वाई.) के मुद्दे पर सीधी बात करते हुए पंजाब के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री डॉ. बलबीर सिंह ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि केंद्र सरकार के फंडों का कोई डायवर्शन या गलत इस्तेमाल नहीं किया गया है, बल्कि इस योजना के तहत केंद्र सरकार द्वारा पंजाब के 249 करोड़ रुपये अभी भी बकाया हैं।
स्वास्थ्य मंत्री आज यहां पंजाब भवन में प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे ताकि आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना के बारे में सारे तथ्य साफ और स्पष्ट तौर पर लोगों के सामने आ सकें।
20 अगस्त, 2019 को लॉन्च की गई आयुष्मान भारत मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना, हर साल प्रति परिवार प्रति साल 5 लाख रुपये का नकद रहित स्वास्थ्य बीमा कवरेज प्रदान करती है। पंजाब ने 44.99 लाख परिवारों को कवर करके और 772 अस्पतालों को सूचीबद्ध किया है जिनमें – 210 सरकारी, 556 निजी, और छह केंद्रीय सरकारी अस्पताल शामिल हैं, इस योजना अधीन महत्वपूर्ण प्रगति की गई है। योजना का बजट केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 अनुपात में है, जो सिर्फ 16.65 लाख सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एस.ई.सी.सी.) परिवारों के लिए है, जबकि बाकी 28 लाख परिवारों का बजट राज्य सरकार सहन करती है।
डॉ. बलबीर सिंह ने बताया कि पिछली सरकारें इस योजना को इंश्योरेंस मोड तहत चला रही थीं जिसमें वे प्रीमियम अदा करती थीं और 29 दिसंबर 2021 को उन्होंने संबंधित बीमा कंपनी के साथ एकरारनामा अचानक रद्द कर दिया, जिससे गड़बड़ी पैदा हो गई थी। उन्होंने कहा, “हमारी सरकार को यह टूटी-फूटी प्रणाली विरासत में मिली है और इस योजना को बड़ी मुश्किल से पुनः सुचज्जित ढंग से कार्यशील बनाया गया है।”
यह भी बताने योग्य है कि पंजाब सरकार, 16.65 लाख एस.ई.सी.सी. परिवारों के लिए 60:40 प्रतिशत के अनुपात में हिस्सा प्राप्त करती है और एस.ई.सी.सी. परिवारों के इलाज के लिए लगभग 585 करोड़ रुपये के क्लेम बनते थे, जिसमें 60 प्रतिशत हिस्से के हिसाब से केंद्र द्वारा लगभग 350.74 करोड़ रुपये अदा किए जाने थे, पर इसमें से सिर्फ 169.34 करोड़ ही पंजाब की स्वास्थ्य एजेंसी (एस.एच.ए.) को प्राप्त हुए हैं।
स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि 249.81 करोड़ रुपये की राशि, जिसमें 51.34 करोड़ रुपये प्रशासनिक खर्चे और 17.07 करोड़ रुपये पिछले बकाए शामिल हैं, केंद्र सरकार के पास अभी भी बकाया है।
उन्होंने बताया कि राज्य स्वास्थ्य एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारियों की टीम ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा के साथ बैठक कर उन्हें बकाया भुगतान की किश्त जारी करने की बिनती की ताकि निजी अस्पतालों को बनता भुगतान किया जा सके। उन्होंने आगे बताया कि यहां तक कि मैंने खुद भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा को मुलाकात के लिए पत्र लिखा था ताकि उन्हें बकाया भुगतान जारी करने की विनती कर सकूं, पर यह कोशिशें नाकाम रही।
उन्होंने भरोसा दिया कि केंद्र सरकार के फंडों की कोई गलत बांट नहीं की गई और सारे फंडों की उपयोग सिर्फ लोक भलाई के लिए की जा रही है।
कैबिनेट मंत्री ने अस्पतालों को भुगतान में देरी का कारण स्पष्ट करते हुए बताया कि फरवरी 2024 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य एजेंसी (एन.एच.ए.) द्वारा लॉन्च किए गए नए सॉफ्टवेयर को अपनाने के बाद इस सॉफ्टवेयर की तकनीकी खामियों के कारण यह समस्या पैदा हुई है। हालांकि, राज्य की स्वास्थ्य एजेंसी ने इस मुद्दे को हल करने के लिए तुरंत कदम उठाते हुए अतिरिक्त स्टाफ की तैनाती भी की है।
डॉ. बलबीर सिंह ने बताया कि सरकार इस योजना के तहत इलाज मुहैया करवा कर ‘सेवा’ करने के इच्छुक निजी अस्पतालों को अधिकृत करेगी। उन्होंने ऐसे निजी अस्पतालों को, जो इस योजना के तहत इलाज मुहैया कराने में असमर्थ हैं, इस योजना से बाहर रहने का विकल्प चुनने की भी पेशकश की।
उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार हर पहलू, चाहे वह सुरक्षा प्रदान करने या फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट की वैधता को एक साल से बढ़ा कर तीन साल करने का मामला हो, पर निजी अस्पतालों के साथ सहयोग किया है।
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